अखिल भारतीय संस्कृत-परिषद्, लखनऊ
एक परिचय
अखिल भारतीय संस्कृत-परिषद्, लखनऊ की स्थापना प्रख्यात समाजवादी आचार्य नरेन्द्रदेव, उ०प्र० के तत्कालीन मुख्यमन्त्री तथा राजस्थान के राज्यपाल डा० सम्पूर्णानन्द,
लखनऊ विश्वविद्यालय तथा वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो० को०अ० सुब्रह्मण्य अय्यर और सत्र तथा जिला न्यायाधीश श्री गोपाल चन्द्र सिंह प्रभृति विद्वानों
की प्रेरणा से सन् 1951 ई0 के उत्तरार्द्ध में हजरतगंज लखनऊ में एक किराये के भवन में हुई थी। उसी वर्ष सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्त 1860 अधीन इसका पंजीकरण भी हो गया था।
उत्तर प्रदेश शासन के सौजन्य से वर्ष 2007 में नगर के ही अलीगंज श्रेत्र में 14155 वर्गफीट श्रेत्रफल में 'देववाणीभवनम् नामक एक दो मंजिले भवन का निर्माण कार्य सम्पन्न हुआ है।
अब परिषद् का पुस्तकालय, वाचनालय, हस्तलिखित ग्रन्थागार तथा कार्यालय इस नवनिर्मित भवन में स्थानान्तरित होकर व्यवस्थित हो गया है। इस नव निर्मित भवन के अतिरिक्त लगभग
22000 वर्गफिट क्षेत्रफल का भूभाग देववाणी-परिसर में रिक्त है। इस भूभाग में प्रेक्षागर तथा पार्किंग आदि का निमार्ण कार्य प्रस्तावित है।
परिषद् के उद्देश्य
- संस्कृत भाषा और साहित्य का प्रचार करना।
- संस्कृत ग्रन्थों का हिन्दी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद करना और उनका प्रकाशन करना।
- संस्कृत, पालि और प्राकृत के हस्तलिखित ग्रन्थों का तथा ऐसे प्राकशित ग्रन्थों का, जो अब दुर्लभ या अप्राप्य है, प्रकाशन करना।
- संस्कृत, पालि और प्राकृत के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज और संग्रह करना।
- संस्कृत के पुस्तकालयों, वाचनालयों, संग्रहालयों की स्थापना करना।
- संस्कृत के देशी और विदेशी विद्वानों और संस्थाओं से सम्पर्क स्थापित करना।
- संस्कृत भाषा और साहित्य के प्रचार, प्रसार और संरक्षण के लिए अन्य आवश्यक कार्य करना।
परिषद् के कार्यकलाय
- पुस्तकालय तथा वाचनालय
उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के निमित्त वर्ष 1958 ई० में एक पुस्तकालय तथा वाचनालय की स्थापना की गई थी। परिषद् पुस्तकालय में संस्कृत, पालि प्राकृत तथा भारती विद्या सम्बन्धी अन्य भाषाओं के प्रायः 20,000 (बीस हजार) मुद्रित ग्रंथ संगृहीत है। परिषद् में संग्रहीत ये ग्रन्थ शोधार्थियों के लिये शोध कार्य में सहायक होते है। - हस्तलिखित ग्रंथों की खोज और संग्रह-
'हस्तलिखित ग्रंथों की खोज और उसका सग्रह करना परिषद् के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। परिषद् इस कार्य में बड़ी तत्परता से संलग्न हो चुकी हैं। इसी के परिणाम स्वरूप परिषद् के हस्तलिखित ग्रंथ संग्रह में 15000 से अधिक पाण्डुलिपियाँ संग्रहीत हो चुकी है। इनमें से 2500 से अधिक पाण्डुलिपियाँ कश्मीर की शारदा लिपि में लिपिबद्ध हैं। परिषद् के पाण्डुलिपि संग्रह में सोलह वृहत्काय ग्रन्थ भुर्ज-पत्र पर तथा कुछ ताड़पत्र और शेष ग्रंथ हस्तनिर्मित कागज पर लिपिवद्ध हैं। सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि विक्रम संवत् 1452 अर्थात सन् 1397 ई0 की है। यह लगभग 600 वर्ष प्राचीन ग्रंथ है। परिषद् द्वारा इन संग्रहीत ग्रंथों की दो मालाओं में विवरणात्मक सूचीपत्र प्रकाशित किये गये हैं प्रथम सूचीतत्र में 1304 ग्रन्थ तथा द्वित्तीय सूचीपत्र में 4033 ग्रंथों के विवरण प्रकाशित हैं। इन पाण्डुलिपियों के सन्दर्भ हेतु देश-विदेश से शोधार्थी आते हैं। उन्हें उनकी आवश्यकतानुसार सुविधाएं परिषद् द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है। - प्राचीन और दुर्लभ ग्रन्थों का सम्पादन और प्रकाशन-
परिषद् के हस्तलिखित ग्रन्थ-संग्रह में अनेक ऐसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ संग्रहीत है, जिनका अभी तक प्रकाशन नहीं हो सका है। परिषद् ऐसे ग्रन्थों के पाठालोचन, सम्पादन और प्रकाशन को अधिक महत्त्व देती है। प्रकाशन-योजना के अन्तर्गत पचास से अधिक ग्रन्थों का प्रकाशन हो चुका है। परिषद् द्वारा मोनियर विलियम्स संस्कृत-अंग्रेजी तथा वी०एस०आप्टे निर्मित अंग्रेजी संस्कृत शब्दकोश का पुनर्मुद्रण भी किया गया है। परिषद् द्वारा प्रकाशित उच्चस्तरीय शोध पत्रिका "ऋतम्" तथा संस्कृत पत्रिका 'अजस्रा' में भी महत्वपूर्ण ग्रंथों को प्रकाशित किया जाता है। - अभिनन्दन-ग्रंथ-समर्पणादि द्वारा संस्कृत और भारती विद्या के प्रकाण्ड विद्वानों का सम्मान-
इसके अन्तर्गत स्व० म०म० पण्डित गोपीनाथ कविराज, रव० को०अ० सुब्रहमण्य अय्यर, स्व० प्रो० लुड्विक स्टर्नबाख और डा० बाबूराम सक्सेना के सम्मान में अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। इनके अतिरिक्त स्व० श्री गोपालचन्द्र सिंह, डॉ० सत्वव्रत सिंह जी तथा मलदेव शास्त्री की स्मृति में "ऋतम्" के विशेषक प्रकाशित हो चुके है। इसी परम्परा में परिषद् द्वारा श्री गोपाल चन्द्र सिंह, प्रो०को०अ० सुब्रह्मण्य अय्यर, पं० रूद्रप्रसाद अवस्थी डॉ० सत्वव्रत सिंह, डॉ० हर्षनारायण तथा प्रो० जगदम्बा प्रसाद सिनहा की स्मृति में " अजस्रा" संस्कृत पत्रिका के विशेषांक प्रकाशित किये गये हैं। इसी क्रम में 'अजस्रा के 25 वर्ष पूर्ण होने पर इसका रजतजयन्ती विशेषांक भी प्रकाशित किया गया है। - गोष्ठियों और विद्वत्सभाओं का आयोजन-
इस योजना के अन्तर्गत परिषद् द्वारा प्रतिवर्ष तीन व्याख्यान मालाएँ नियमित रूप से आयोजित की जाती है। इन व्याख्यान मालाओं में अब तक देश-विदेश के लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों के व्याख्यान सम्पन्न हो चूके हैं। इसके अतिरिक्त विद्वद्द्योष्ठियों एवं संस्कृत कविसम्मेलनों का आयोजन और संस्कृत नाटकों का प्रयोग परिषद् द्वारा किया जाता रहा हैं। आर्थिक संसाधनों के अभाव में इन कार्यक्रमों के नियमित आयोजन सम्भव नहीं हो पा रहे है। परिषद् द्वारा विगत वर्षों में 'वेदज्ञानसप्ताह', 'संस्कृत और विज्ञान', 'भारतीय तन्त्रशास्त्र के वैदिक आधार', 'संस्कृत वाङ्मय में मानवाधिकार', तथा 'भारतीय संस्कृति और संस्कार-आधुनिक परिप्रेक्ष्य में विषयक राष्ट्रिय सङ्ङ्गोष्ठियाँ आयोजित की जा चुकी है। इन सङ्गोष्ठियों में देश के लब्ध-प्रतिष्ठ विद्वानों ने भाग लिया है। - पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन-
परिषद् द्वारा 'ऋतम्' नामक शोध-पत्रिका तथा 'अजस्रा' नामक संस्कृत पत्रिका का नियमित प्रकाशन किया जा रहा है। ऋतम् के अब तक कु 41 अंक प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अन्तर्गत अतिमहत्त्वपूर्ण शोधपरक लेख प्रकाशित होते हैं। इस पत्रिका के प्रकाशन के महत्त्वपूर्ण उद्देश्य निम्मलिखित हैं।-- भारती विद्या के विविध क्षेत्रों में शोध कार्य प्रेरित करना।
- परिषद् में संगृहीत महत्त्वपूर्ण हस्तलिखित ग्रन्थों को प्रकाश में लाना।
- इससे संम्बन्धित शोध कार्यों के समाचारों से उनमें रूचि रखने वाले शोधार्थियों को अवगत करना।
- शोध संस्थान-
अखिल भारतीय संस्कृत-परिषद्, लखनऊ को कानपुर तथा अवध विश्वविद्यालयों से शोध संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त थी। इसके अन्तर्गत शोध कार्य करते हुए कुछ शोधार्थियों ने पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की थी। कालान्तर में अखिल भारतीय संस्कृत परिषद् किराये के भवन से अपने नवनिर्मित भवन में व्यवस्थित हो गयी। इस प्रक्रिया में काफी समय लग गया। जिसके कारण शोध संस्थान की गतिविधियाँ अवरुध हो गयी और शोध संस्थान की मान्यता भी समाप्त हो गयी। अब इसे 'वेदान्तदेशिक अध्ययन एवं अनुसन्धान संस्थान नाम से पुनः जाग्रत करने की योजना है। - पाण्डुलिपि संसाधन केन्द्र-
राष्ट्रिय पाण्डुलिपि मिशन नई दिल्ली की महत्त्वकांक्षी योजना के अन्तर्गत अखिल भारतीय संस्कृत-परिषद् लखनऊ को पाण्डुलिपि संसाधन केन्द्र के रूप में चुना गया है। इस योजना के अन्तर्गत परिषद् के संग्रहीत पाण्डुलिपियों के अतिरिक्त अन्य संस्थानों और व्यक्तिगत संग्रहोमें संगृहीत पाण्डुलिपियों के सूचीकरण का कार्य सम्पन्न किया जा रहा है। अब तक प्रायः 52000 (बावन हजार) पाण्डुलिपियों के सूचीकरण का कार्य सम्पन्न किया जा चुका है।
विशेष
- राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान की शास्त्र चुड़ामणि योजना के अन्तर्गत परिषद् के चार विद्वानों सर्वश्री डॉ० सत्यव्रत सिंह, प्रो० जगदम्बा प्रसाद सिनहा, पं० राम नारायण त्रिपाठी तथा प्रो० रमाशंकर मिश्र जी को चुना गया था।
- इण्टरनेशनल एसोशिएशन फार संस्कृत स्टडीज द्वारा परिषद् को विशिष्ट सदस्य के रूप में नामित किया गया है।
- शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा विदेशी छात्रों के साथ पारस्परिक छात्रवृति योजना के अन्तर्गत छात्रवृत्ति प्रदान कर अध्ययनार्थ जिन संस्थाओं को भेजता है, उनमें परिषद् का भी नाम है। इस योजना का लाभ कतिपय विदेशी विद्वान् उठा भी चुकें हैं।